1) कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा
अर्थ : राम, कृष्ण, हरि, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग-अलग नाम हैं. वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथों में एक ही ईश्वर की बात करते हैं, और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ पढ़ाते हैं।
2) ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण
अर्थ : किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वह किसी ऊंचे कुल में जन्मा है. यदि उस व्यक्ति में योग्य गुण नहीं हैं तो उसे नहीं पूजना चाहिए, उसकी जगह अगर कोई व्यक्ति गुणवान है तो उसका सम्मान करना चाहिए, भले ही वह कथित नीची जाति से हो।
3) जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास
अर्थ : जिस रविदास को देखने से लोगों को घृणा आती थी, जिनके रहने का स्थान नर्क-कुंड के समान था, ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना, ऐसा ही है जैसे मनुष्य के रूप में दोबारा से उत्पत्ति हुई हो।
4) कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै
अर्थ : ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है. यदि आदमी में थोड़ा सा भी अभिमान नहीं है तो उसका जीवन सफल होना निश्चित है। ठीक वैसे ही जैसे एक विशाल शरीर वाला हाथी शक्कर के दानों को नहीं बीन सकता, लेकिन एक तुच्छ सी दिखने वाली चींटी शक्कर के दानों को आसानी से बीन सकती है।
5) करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
अर्थ : आदमी को हमेशा कर्म करते रहना चाहिए, कभी भी कर्म के बदले मिलने वाले फल की आशा नही छोड़नी चाहिए, क्योंकि कर्म करना मनुष्य का धर्म है तो फल पाना हमारा सौभाग्य।
6) मन चंगा तो कठौती में गंगा
अर्थ : जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा भी एक कठौती (चमड़ा भिगोने के लिए पानी से भरे पात्र) में भी आ जाती हैं।
7) मन ही पूजा मन ही धूप,
मन ही सेऊं सहज स्वरूप
अर्थ : निर्मल मन में ही ईश्वर वास करते हैं, यदि उस मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो ऐसा मन ही भगवान का मंदिर है, दीपक है और धूप है। ऐसे मन में ही ईश्वर निवास करते हैं।
8) हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास
अर्थ : हीरे से बहुमूल्य हैं हरि। यानी जो लोग ईश्वर को छोड़कर अन्य चीजों की आशा करते हैं उन्हें नर्क जाना ही पड़ता है।
9) रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच
नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच
अर्थ : कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है, आदमी अपने कर्मों के कारण नीचा होता है।
10) जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात
अर्थ : जिस प्रकार केले के तने को छीला तो पत्ते के नीचे पत्ता, फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नही निकलता, लेकिन पूरा पेड़ खत्म हो जाता है। ठीक उसी तरह इंसानों को भी जातियों में बांट दिया गया है, जातियों के विभाजन से इंसान तो अलग-अलग बंट ही जाते हैं, अंत में इंसान खत्म भी हो जाते हैं, लेकिन यह जाति खत्म नही होती।
संत रविदास जी के एक और अनमोल विचार है, "सबको समान न्याय मिलना चाहिए।" इस विचार से उन्होंने समाज में भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाया था। उन्होंने समाज को समानता के मार्ग पर लाने के लिए लगातार प्रयास किए थे। इसलिए, संत रविदास जी एक महान संत थे जिन्होंने समाज के लिए अनेक महत्वपूर्ण संदेश दिए थे।
- जो कुछ करता है, वह उसी का होता है।
- सब रंगों से मिलकर एक रंग बन जाता है।
- जीवन का अभिन्न अंग संदेह है।
- अपने आप से लड़ने से ही असली जीत होती है।
- जो सत्य का पालन करता है, उसे कभी भी डर नहीं होता।
- ईश्वर की अस्तित्व की निश्चितता से कोई भी नहीं वंचित हो सकता।
- सम्पूर्ण मानव जाति में कोई भी उच्च या निम्न नहीं होता।
- सत्य के मार्ग पर चलना सबसे बड़ी उपलब्धि है।
- एकता में ही संपूर्ण विश्वास है।
- सभी धर्म एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं।
- दूसरों की बुराई करना छोड़ दो, स्वयं में सुधार करो।"
- सब जगह है तेरा नाम, इस बात को कोई न जाने।"
- जो दीन होता है, वही सत्य होता है।"
- जीते जी तो यही सोचो, मरते जी तो यही सोचो।"
संत रविदास जी के अनमोल विचार हमें ईश्वर के प्रति श्रद्धा का भाव रखने और अपने कर्मों के लिए जवाबदेह होने का संदेश देते हैं।
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